गुरुवार, 24 अप्रैल 2014
Posted by Maneesh on 9:58 am
फ़राज़ अब कोई सौदा कोई जुनूँ भी नहीं;
मगर क़रार से दिन कट रहे हों यूँ भी नहीं;
लब-ओ-दहन भी मिला गुफ़्तगू का फ़न भी मिला;
मगर जो दिल पे गुज़रती है कह सकूँ भी नहीं;
मेरी ज़ुबाँ की लुक्नत से बदगुमाँ न हो ;
जो तू कहे तो तुझे उम्र भर मिलूँ भी नहीं;
"फ़राज़" जैसे कोई दिया तुर्बत-ए-हवा चाहे है;
तू पास आये तो मुमकिन है मैं रहूँ भी नहीं।
Categories: Ahmad Faraz, hindi shayari