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सोमवार, 12 मई 2014

आज हम बिछड़े हैं तो

आज हम बिछड़े हैं तो कितने रंगीले हो गए
मेरी आंखें सुर्ख़, तेरे हाथ पीले हो गए।

कब की पत्थर हो चुकी थीं, मुंतज़िर आंखें मगर
छू के देखा तो मेरे भी हाथ गीले हो गए।

जाने क्या एहसास, साज़े- हुस्न के तारों में है
जिनको छूते ही मेरे नगमे रसीले हो गए।

अब कोई उम्मीद है शाहिद न कोई आरज़ू
आसरे टूटे तो जीने के वसीले हो गए।
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