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शुक्रवार, 2 अक्तूबर 2015

मखदूम मुहीउद्दीन

 आप की याद आती रही रात भर

आप की याद आती रही रात भर
चस्मे-नम मुस्कुराती रही रात भर
रात भर दर्द की शमा जलती रही
गम की लौ थरथराती रही रात भर
बाँसुरी की सुरीली सुहानी सदा
याद बन बन के आती रही रात भर
याद के चाँद दिल में उतरते रहे
चाँदनी जगमगाती रही रात भर
कोई दीवाना गलियों में फिरता रहा
कोई आवाज आती रही रात भर
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