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Hindi Shayari - हिन्दी शायरी


Hindi Shayari - हिन्दी शायरी / हिंदी शायरी

1.
किसी की आँखों मे मोहब्बत
का सितारा होगा
एक दिन आएगा कि कोईशख्स
हमारा होगा
कोई जहाँ मेरे लिए
मोती भरी सीपियाँ चुनता होगा
वो किसी और
दुनिया का किनारा होगा
काम मुश्किल है मगर जीत
ही लूगाँ किसी दिल को
मेरे खुदा का अगर
ज़रा भी सहारा होगा
किसी के होने पर मेरी साँसे चलेगीं
कोई तो होगा जिसके
बिना ना मेरा गुज़ारा होगा
देखो ये अचानक
ऊजाला हो चला,
दिल कहता है कि शायद
किसी ने धीमे से मेरा नाम
पुकारा होगा
और यहाँ देखो पानी मे
चलता एक अन्जान साया,
शायद किसी ने दूसरे किनारे
पर अपना पैर उतारा होगा
कौन रो रहा है रात के सन्नाटे
मे
शायद मेरे जैसा तन्हाई
का कोई मारा होगा
अब तो बस उसी किसी एक
का इन्तज़ार है,
किसी और का ख्याल ना दिल
को ग़वारा होगा
ऐ ज़िन्दगी! अब के ना शामिल
करना मेरा नाम
ग़र ये खेल ही दोबारा होगा

2.
‘‘अब के बरस भी देखेंगे हम सावन भीगी आँखों का,
अब के बरस भी तन्हाई के बादल अपने सर पर हैं।’’

3.
वो सूखे फूल तुम अपनी किताबों से
हटा देना,,
जहाँ तक हो सके हर निशाँ चाहत
का मिटा देना,,
तुम्हारी बेवफाई दूसरों पर क्यों उजागर
हो,,
मेरे कुछ ख़त तुम्हारे पास हैं
उनको जला देना,,
कभी अपने ताल्लुक़ की बात अगर आ
भी जाती है,,
तो हंस कर टाल जाना या बातों में
उड़ा देना,,
तुम्हारे साथ वो भी किनारा कर
गयी मुझसे,,
मेरी नींदें कहाँ हैं इन दिनों ये
तो बता देना,,
वो लैला और मज़नू के ज़माने और थे दोस्तों,,
हमारे दौर का दस्तूर है मिलना और
भुला देना।।

4.
सौदा हमारा कभी बाज़ार तक
नही पहुंचा,,
इश्क था जो कभी इज़हार तक
नही पहुंचा,,
यूँ तो गुफ्तगू बहुत हुई उनसे मेरी,,
सिलसिला कभी ये प्यार तक नही पहुंचा,,
जाने कैसे वाकिफ़ हो गया तमाम शहर,,
दास्ताने-इश्क वैसे "अखबार" तक
नही पहुंचा,,
शर्तें एक दूसरे की मंज़ूर थी यूँ तो,,
पर मसौदा हमारा कभी "करार" तक
नही पहुंचा,,
गहराई दोस्ती की मैं नापता भी कैसे,,
रिश्ता हमारा कभी "तकरार" तक
नही पहुंचा,,
गुरुर मेरा मुझे इज़ाज़त नही देता,,
सिर्फ इसलिए उसके दिलो-दरबार तक
नही पहुंचा।।

5.
बेवफा मैं था वक़्त था या मुक़द्दर था,
बात जो भी थी अंजाम जुदाई निकला..

6.
एक ग़ज़ल तेरे लिए ज़रूर लिखूगा, बे-हिसाब उस में तेरा कुसूर लिखोंगा.....
टूट गए बचपन के तेरे सारे खिलोने, अब दिलो से खेलना तेरा दस्तूर लिखूगा.....

7.
हुस्न हर बार शरारत मैं.. पहल करता है..
बात बढती है तोह इश्क के सर आती है..........

8.
कोई हम-नफस नहीं है कोई राजदान नहीं है
फ़क़त एक दिल था अपना, वो भी मेहरबान नहीं है
मेरी रूह की हकीकत मेरे आंसुओं से पूछो
मेरा मजलिसी तबस्सुम मेरा तर्जुमान नहीं है
इन्हीं पत्थरों पे चल कर अगरआ सको तो आओ
मेरे घर के रास्ते में कोई कहकशां नहीं है

9.
"मैं उस का हूँ वो इस एहसास से इंकार करता है,
भरी महफ़िल में भी रुसवा मुझे हर बार करता है
यकीं है सारी दुनिया को खफा है मुझ से
वो लेकिन
मुझे मालूम है फिर भी मुझे से प्यार करता है ......

10.
दीवाना उसने कर दिया एक बार देख कर ...
हम कुछ भी कर सके न लगातार देख कर....

11.
ये धुआँ कम हो तो पहचान हो मुमकिन,
शायद यूँ तो वो जलता हुआ, अपना ही घर लगता है

12.
शायद मुझे निकाल के पछता रहे हों आप:
महफ़िल में इस ख़याल से फिर आ गया हूँ मैं!

13.
जीवन की आपाधापी में कब वक़्त मिला
कुछ देर कहीं पर बैठ कभी यह सोच सकूँ
जो किया, कहा, माना उसमें क्या बुरा भला।

14.
जिस दिन मेरी चेतना जगी मैंने देखा
मैं खड़ा हुआ हूँ इस दुनिया के मेले में,
हर एक यहाँ पर एक भुलाने में भूला
हर एक लगा है अपनी अपनी दे-ले में
कुछ देर रहा हक्का-बक्का, भौचक्का-सा,
आ गया कहाँ, क्या करूँ यहाँ, जाऊँ किस जा?
फिर एक तरफ से आया ही तो धक्का-सा
मैंने भी बहना शुरू किया उस रेले में,
क्या बाहर की ठेला-पेली ही कुछ कम थी,
जो भीतर भी भावों का ऊहापोह मचा,
जो किया, उसी को करने की मजबूरी थी,
जो कहा, वही मन के अंदर से उबल चला,
जीवन की आपाधापी में कब वक़्त मिला
कुछ देर कहीं पर बैठ कभी यह सोच सकूँ
जो किया, कहा, माना उसमें क्या बुरा भला।

15.
मेला जितना भड़कीला रंग-रंगीला था,
मानस के अन्दर उतनी ही कमज़ोरी थी,
जितना ज़्यादा संचित करने की ख़्वाहिश थी,
उतनी ही छोटी अपने कर की झोरी थी,
जितनी ही बिरमे रहने की थी अभिलाषा,
उतना ही रेले तेज ढकेले जाते थे,
क्रय-विक्रय तो ठण्ढे दिल से हो सकता है,
यह तो भागा-भागी की छीना-छोरी थी;
अब मुझसे पूछा जाता है क्या बतलाऊँ
क्या मान अकिंचन बिखराता पथ पर आया,
वह कौन रतन अनमोल मिला ऐसा मुझको,
जिस पर अपना मन प्राण निछावर कर आया,
यह थी तकदीरी बात मुझे गुण दोष न दो
जिसको समझा था सोना, वह मिट्टी निकली,
जिसको समझा था आँसू, वह मोती निकला।
जीवन की आपाधापी में कब वक़्त मिला
कुछ देर कहीं पर बैठ कभी यह सोच सकूँ
जो किया, कहा, माना उसमें क्या बुरा भला।

16.
मैं कितना ही भूलूँ, भटकूँ या भरमाऊँ,
है एक कहीं मंज़िल जो मुझे बुलाती है,
कितने ही मेरे पाँव पड़े ऊँचे-नीचे,
प्रतिपल वह मेरे पास चली ही आती है,
मुझ पर विधि का आभार बहुत-सी बातों का।
पर मैं कृतज्ञ उसका इस पर सबसे ज़्यादा -
नभ ओले बरसाए, धरती शोले उगले,
अनवरत समय की चक्की चलती जाती है,
मैं जहाँ खड़ा था कल उस थल पर आज नहीं,
कल इसी जगह पर पाना मुझको मुश्किल है,
ले मापदंड जिसको परिवर्तित कर देतीं
केवल छूकर ही देश-काल की सीमाएँ
जग दे मुझपर फैसला उसे जैसा भाए
लेकिन मैं तो बेरोक सफ़र में जीवन के
इस एक और पहलू से होकर निकल चला।
जीवन की आपाधापी में कब वक़्त मिला
कुछ देर कहीं पर बैठ कभी यह सोच सकूँ
जो किया, कहा, माना उसमें क्या बुरा भला।

17.
गम ही नहीं है ज़िन्दगी का हिस्सा,,
खुशिया भी तकलीफ देती है अब।

18.
कौन इस घर की देखभाल करे..
रोज़ इक चीज़ टूट जाती है..

19.
देखी है उसकी आँख में मैंने पहली दफा नमी..
लग रहा जैसे समंदर आज उदास है..

20.
तेरे कहने पर लगायी है मैंने ये मेहंदी..
अब ईद पर तू ना आया तो क़यामत होगी..

21.
दिल की बस्ती भी शहरे दिल्ली है..
जो भी गुज़रा है, उसने लूटा है..

22.
एक ये ख्वाहिश की ज़ख्म ना देखे कोई दिल के..
एक ये हसरत की कोई देखने वाला होता..

23.
सुना है इश्क से तेरी बहुत बनती है..
एक एहसान कर, उस से मेरा कसूर तो पूछ..

24.
खाने को ग़म, पीने को आंसू, बिछाने को चाहें, ढकने को आहें ..
शायर की झोपडी में किस चीज़ की कमी है ?

25.
है कोई वकील-ऐ-बा-कमाल यारो..
जो हारा हुआ इश्क जीता दे मुझको..

26.
कुछ तो शराफ़त सीख ले, ऐ इश्क!, शराब से..
बोतल पे लिखा तो है, मै जानलेवा हूँ...

27.
गिरफ्त को जरा ढीला कर दो..
वरना हम खामखाँ मर जायेंगे..

28.
मैं जिंदगी की खरोंचे सजा के चेहरे पर..
हर-एक से पूछता फिरता हूँ कि कैसा लगता हूँ..

29.
इश्क नाजुक मिजाज है बेहद..
अक्ल का बोझ उठा नहीं सकता..

30.
ऐ बादल ! मेरी आँखें तुम रख लो..
कसम से बङी माहिर है बरसने में..

31.
ना-उम्मीदी मौत से कहती है, अपना काम कर..
आस कहती है, ठहर, ख़त का जवाब आने को है..

32.
आज हम बिछड़े है तो कितने रंगीले हो गए..
मेरी आँखे लाल और तेरे हाथ पीले हो गए..


33.
तेरी ख़ुशी की खातिर मैंने कितने ग़म छिपाए..
अगर मैं हर बार रोता तो तेरा शहर डूब जाता..

34.
किस तरह संभालोगे तुम जिंदगी के रिश्ते..
ज़रा सी एक जबान तो संभाली नहीं जाती..

35.
रिश्ते जलते हैं तो भी राख नहीं बनते..
ता-उम्र सुलगते हैं आहिस्ता-आहिस्ता..

36.
कितनी रक़म लोगे किराये के कातिलो..
मुझे इश्क का सर कलम चाहिए..

37.
उम्र-ऐ-जवानी फिर कभी ना मुस्करायी बचपन की तरह..
मैंने साइकिल भी खरीदी, खिलौने भी लेके देख लिए..

38.
वो मिला भी तो फ़क़त खुदा के दरबार में..
अब तुम ही बताओ की मोहब्बत करते या इबादत..

39.
यकीन मानो कोई मजबूरियां नहीं होती..
लोग बस आदतन वफ़ा नहीं करते..

40.
जहाँ पेड़ पर चार दाने लगे
हज़ारों तरफ़ से निशाने लगे

41.
हुई शाम यादों के इक गाँव में
परिंदे उदासी के आने लगे

42.
घड़ी दो घड़ी मुझको पलकों पे रख
यहाँ आते-आते ज़माने लगे

43.
कभी बस्तियाँ दिल की यूँ भी बसीं
दुकानें खुलीं, कारख़ाने लगे

44.
वहीं ज़र्द पत्तों का कालीन है
गुलों के जहाँ शामियाने लगे

45.
पढाई-लिखाई का मौसम कहाँ
किताबों में ख़त आने-जाने लगे

46.
ये जो हर मोड़ पर आ मिलती है मुझसे..
बद-नसीबी कहीं मेरी दीवानी तो नहीं..

47.
मुझे ज़ख्म ही मिले हैं, मैं जहाँ-जहाँ गया..
कभी दुश्मनी के बदले, कभी दोस्ती के बदले..

48.
मैं एक सितारे की सीरत पर मर गया वरना..
फलक से करता रहा चाँद भी इशारे मुझको..

49.
किसी की याद में दहलीज़ पर दिये न रक्खा करो ..
किवाड़ सूखी हुई लकड़ियों के होते हैं..

50.
अपने गुनाहों पर सौ पर्दे डालकर,
हर शख़्स कहता है..."ज़माना बड़ा ख़राब है"..


51.
मोहब्बत का इशारा याद रहता है ।
हर प्यार को अपना प्यार याद रहता है ।।
दो पल जो प्यार की राहों में गुजरा हो ।
मौत तक वो नजारा याद रहता है


52.
बैठ जाता हूं मिट्टी पे अक्सर.
क्योंकि मुझे अपनी औकात अच्छी लगती है.

53.
मैं उसकी ज़िंदगी से ​चला जाऊं यह उसकी दुआ थी;
और उसकी हर दुआ पूरी हो, यह मेरी दुआ थी।

54.
कितनी मासूम सी ख्वाहिश है इस नादान दिल की ....
चाहत है कि,
मोहब्बत भी करें .और  खुश भी रहें