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सोमवार, 19 अक्तूबर 2015

माँ पर शायरी

माँ पर शायरी

मोहब्बत की बात भले ही करता हो जमाना 
मगर प्यार आज भी "माँ "से शुरू होता है 

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ऐ मेरे मालिक
तूने गुल को गुलशन में जगह दी,
पानी को दरिया में जगह दी,
पंछियो को आसमान मे जगह दी,
तू उस शख्स को जन्नत में जगह देना,
जिसने मुझे "..नौ.." महीने पेट में जगह दी....!!
!!!माँ !!!

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 देखा करो कभी अपनी माँ की आँखों में,

ये वो आईना है जिसमें बच्चे कभी बूढ़े नहीं होते!

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 कुछ इसलिये भी रख लिये..
एक बेबस माँ ने नवरात्रों के उपवास..!
ताकि नौ दिन तक तो उसके बच्चे भरपेट खा सकें...!!

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 ये कहकर मंदिर से फल की पोटली चुरा ली माँ ने....
तुम्हे खिलाने वाले तो और बहुत आ जायगे गोपाल...
मगर मैने
ये चोरी का पाप ना किया तो भूख से मर जायेगा मेरा लाल.... 

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कितना भी लिखो इसके लिये कम है।

सच है ये कि " माँ " तू है, तो हम है ।।

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 हर रिश्ते में मिलावट देखी
लेकिन सालो साल देखा है ,माँ को
.
उसके चेहरे पे न थकावट देखी
न ममता में कोई मिलावट देखी..!!!

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 वो तो बस दुनिया के "रिवाज़ो" कि बात है
वर्ना
संसार मे "माँ" के अलावा
सच्चा प्यार कोई नही देता .

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 उन बूढ़ी बुजुर्ग उँगलियों मेंकोई ताकत तो ना थी...
मगर मेरा सिर झुका तो
काँपते हाथों ने जमाने भर की दौलत दे दी .

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 सुला दिया माँ ने ये कहकर,

परियां आएंगी सपनों‬ में ‪‎रोटियां‬ लेकर...!!

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 " जो मांगू वो दे दिया कर......
ऐ ज़िन्दगी
तू बस......मेरी माँ की तरह बन जा " !!

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ज़रा सी बात है लेकिन हवा को कौन समझाए
दीए से मेरी माँ मेरे लिए काजल बनाती है।


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हवा दुखों की जब आई कभी ख़िज़ाँ की तरह
मुझे छुपा लिया मिट्टी ने मेरी माँ की तरह


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मुझे बस इस लिए अच्छी बहार लगती है
कि ये भी माँ की तरह ख़ुशगवार लगती है


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ऐ अँधेरे! देख ले मुँह तेरा काला हो गया
माँ ने आँखें खोल दीं घर में उजाला हो गया


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रौशनी देती हुई सब लालटेनें बुझ गईं
ख़त नहीं आया जो बेटों का तो माएँ बुझ गईं


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  ख़ुद को इस भीड़ में तन्हा नहीं होने देंगे
माँ तुझे हम अभी बूढ़ा नहीं होने देंगे 


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 मुनव्वर राणा की माँ पर शायरी 


 सिसकियाँ उसकी न देखी गईं मुझसे ‘राना’
रो पड़ा मैं भी उसे पहली कमाई देते


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ऐसे तो उससे मोहब्बत में कमी होती है,
माँ का एक दिन नहीं होता है, सदी होती है। 


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आँखों से माँगने लगे पानी वज़ू का हम 
काग़ज़ पे जब भी देख लिया माँ लिखा हुआ
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ये ऐसा कर्ज है जो मैं अदा कर ही नहीं सकता,
मैं जब तक घर न लौटूं, मेरी माँ सज़दे में रहती है
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चलती फिरती आँखों से अज़ान देखी है
मैंने जन्नत तो नहीं देखी है माँ देखि है

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मामूली एक कलम से कहां तक घसीट लाए
 हम इस ग़ज़ल को कोठे से माँ तक घसीट लाए

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मैंने रोते हुए पोंछे थे किसी दिन आँसू
मुद्दतों माँ ने नहीं धोया दुपट्टा अपना
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लबों पे उसके कभी बद्दुआ नहीं होती
बस एक माँ है जो मुझसे ख़फ़ा नहीं होती
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अब भी चलती है जब आँधी कभी ग़म की ‘राना’
माँ की ममता मुझे बाहों में छुपा लेती है
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मुसीबत के दिनों में माँ हमेशा साथ रहती है
पयम्बर क्या परेशानी में उम्मत छोड़ सकता है

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जब तक रहा हूँ धूप में चादर बना रहा
मैं अपनी माँ का आखिरी ज़ेवर बना रहा
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किसी को घर मिला हिस्से में या कोई दुकाँ आई
मैं घर में सब से छोटा था मेरे हिस्से में माँ आई
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ऐ अँधेरे! देख ले मुँह तेरा काला हो गया
माँ ने आँखें खोल दीं घर में उजाला हो गया
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इस तरह मेरे गुनाहों को वो धो देती है
माँ बहुत ग़ुस्से में होती है तो रो देती है
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मेरी ख़्वाहिश है कि मैं फिर से फ़रिश्ता हो जाऊँ
माँ से इस तरह लिपट जाऊँ कि बच्चा हो जाऊँ
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हादसों की गर्द से ख़ुद को बचाने के लिए
माँ ! हम अपने साथ बस तेरी दुआ ले जायेंगे
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ख़ुद को इस भीड़ में तन्हा नहीं होने देंगे
माँ तुझे हम अभी बूढ़ा नहीं होने देंगे
 
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यहीं रहूँगा कहीं उम्र भर न जाउँगा
ज़मीन माँ है इसे छोड़ कर न जाऊँगा
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अभी ज़िन्दा है माँ मेरी मुझे कु्छ भी नहीं होगा
मैं जब घर से निकलता हूँ दुआ भी साथ चलती है
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कुछ नहीं होगा तो आँचल में छुपा लेगी मुझे
माँ कभी सर पे खुली छत नहीं रहने देगी
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दिन भर की मशक़्क़त से बदन चूर है लेकिन
माँ ने मुझे देखा तो थकन भूल गई है
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दुआएँ माँ की पहुँचाने को मीलों मील जाती हैं
कि जब परदेस जाने के लिए बेटा निकलता है
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दिया है माँ ने मुझे दूध भी वज़ू करके
महाज़े-जंग से मैं लौट कर न जाऊँगा
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बहन का प्यार माँ की ममता दो चीखती आँखें
यही तोहफ़े थे वो जिनको मैं अक्सर याद करता था
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बरबाद कर दिया हमें परदेस ने मगर
माँ सबसे कह रही है कि बेटा मज़े में है
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खाने की चीज़ें माँ ने जो भेजी हैं गाँव से
बासी भी हो गई हैं तो लज़्ज़त वही रही
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मुक़द्दस मुस्कुराहट माँ के होंठों पर लरज़ती है
किसी बच्चे का जब पहला सिपारा ख़त्म होता है
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मैंने कल शब चाहतों की सब किताबें फाड़ दीं
सिर्फ़ इक काग़ज़ पे लिक्खा लफ़्ज़ ए माँ रहने दिया
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माँ के आगे यूँ कभी खुल कर नहीं रोना
जहाँ बुनियाद हो इतनी नमी अच्छी नहीं होती
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बुज़ुर्गों का मेरे दिल से अभी तक डर नहीं जाता
कि जब तक जागती रहती है माँ मैं घर नहीं जाता
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मुझे कढ़े हुए तकिये की क्या ज़रूरत है
किसी का हाथ अभी मेरे सर के नीचे है
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अब भी रौशन हैं तेरी याद से घर के कमरे
रौशनी देता है अब तक तेरा साया मुझको
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मेरे चेहरे पे ममता की फ़रावानी चमकती है
मैं बूढ़ा हो रहा हूँ फिर भी पेशानी चमकती है
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जब भी देखा मेरे किरदार पे धब्बा कोई
देर तक बैठ के तन्हाई में रोया कोई
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 मेरी ममता को बुढ़ापे का सहारा चाहिए,
मुझको बेटा चाहिए और वो भी ज़िंदा चाहिए


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ख़ुदा ने ये सिफ़त दुनिया की हर औरत को बख्शी है,
कि वो पागल भी हो जाए तो बेटे याद रहते हैं।


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तेरे दामन में सितारे हैं तो होंगे ऐ फ़लक,
मुझको अपनी माँ की मैली ओढ़नी अच्छी लगी।


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जब भी कश्ती मेरी सैलाब में आ जाती है,
माँ दुआ करती हुई ख़्वाब में आ जाती है।

 

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कल अपनेआप को देखा था माँ की आँखों में,
ये आईना हमें बूढ़ा नहीं बताता है।

 
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क़ुबूलियत की घड़ी है अगर मेरे मौला,
तो माँ के चेहरे से ये सारी झुर्रियां उड़ जाए। 
 


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निदा  फाजली

बेसन की सोंधी रोटी पर, खट्टी चटनी जैसी माँ
याद आती है चौका, बासन, चिमटा, फूंकनी जैसी माँ
बांस की खुर्री खाट के ऊपर, हर आहट पर कान धरे
आधी सोई आधी जागी, थकी दोपहरी जैसी माँ चिड़ियों के चहकार में गूंजे, राधा - मोहन  अली- अली 
मुर्गी की आवाज़ से खुलती, घर की कुण्डी जैसी माँ
बीवी, बेटी, बहन, पड़ोसन, थोड़ी थोड़ी सब में
दिन भर इक रस्सी के ऊपर, चलती नटनी जैसी माँ
बाँट के अपना चेहरा, माथा, आँखें, जाने कहाँ गयी
फटे पुराने इक एलबम, में चंचल लड़की जैसी माँ...

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मैं रोया परदेस में, भीगा माँ का प्यार
दुःख ने दुःख से बात कि, बिन चीठी बिन तार

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