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शुक्रवार, 2 मई 2014

टी. वी. से अख़बार तक ग़र सेक्स की बौछार हो,

टी. वी. से अख़बार तक ग़र सेक्स की बौछार हो,
फिर बताओ कैसे अपनी सोच का विस्तार हो ।

बह गए कितने सिकन्दर वक़्त के सैलाब में,
अक़्ल इस कच्चे घड़े से कैसे दरिया पार हो ।

सभ्यता ने मौत से डर कर उठाए हैं क़दम,
ताज की कारीगरी या चीन की दीवार हो ।

मेरी ख़ुद्दारी ने अपना सर झुकाया दो जगह,
वो कोई मज़लूम हो या साहिबे-किरदार हो ।

एक सपना है जिसे साकार करना है तुम्हें,
झोपड़ी से राजपथ का रास्ता हमवार हो ।
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