अशआर मेरे यूँ तो ज़माने के लिए हैं
कुछ शेर फकत उनको सुनाने के लिए हैं
अब ये भी नहीं ठीक के हर दर्द मिटा दें
कुछ दर्द कलेजे से लगाने के लिए हैं
आँखों में जो भर लोगे तो काँटों से चुभेंगे
ये ख्वाब तो पलकों पे सजाने के लिए हैं
देखूं तेरे हाथों को तो लगता है, तेरे हाथ
मंदिर में फकत दीप जलाने के लिए हैं
ये इल्म का सौदा, ये रिसालें, ये किताबें
एक शख्स की याद को भुलाने के लिए हैं
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ख़ुदा महफूज़ रखें आपको तीनों बलाओं से, वकीलों से, हक़ीमों से, हसीनों की निगाहों से। -अकबर इलाहाबादी
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रोने दे आज हमको तू आँखें सुजाने दे बाहों में ले ले और ख़ुद को भीग जाने दे हैं जो सीने में क़ैद दरिया वो छूट जायेगा हैं इतना दर्द के तेरा द...
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गर यही है आदत-ए-तकरार हँसते बोलते मुँह की एक दिन खाएँगे अग्यार हँसते बोलते थी तमन्ना बाग-ए-आलम में गुल-ओ-बुलबुल की तरह दिल-लगी में हसरत-ए...
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आप की याद आती रही रात भर आप की याद आती रही रात भर चस्मे-नम मुस्कुराती रही रात भर रात भर दर्द की शमा जलती रही गम की लौ थरथराती रही रात भ...
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जां निसार अख्तर
अशआर मेरे यूँ तो ज़माने के लिए हैं
कुछ शेर फकत उनको सुनाने के लिए हैं
अब ये भी नहीं ठीक के हर दर्द मिटा दें
कुछ दर्द कलेजे से लगाने के लिए हैं
आँखों में जो भर लोगे तो काँटों से चुभेंगे
ये ख्वाब तो पलकों पे सजाने के लिए हैं
देखूं तेरे हाथों को तो लगता है, तेरे हाथ
मंदिर में फकत दीप जलाने के लिए हैं
ये इल्म का सौदा, ये रिसालें, ये किताबें
एक शख्स की याद को भुलाने के लिए हैं
कुछ शेर फकत उनको सुनाने के लिए हैं
अब ये भी नहीं ठीक के हर दर्द मिटा दें
कुछ दर्द कलेजे से लगाने के लिए हैं
आँखों में जो भर लोगे तो काँटों से चुभेंगे
ये ख्वाब तो पलकों पे सजाने के लिए हैं
देखूं तेरे हाथों को तो लगता है, तेरे हाथ
मंदिर में फकत दीप जलाने के लिए हैं
ये इल्म का सौदा, ये रिसालें, ये किताबें
एक शख्स की याद को भुलाने के लिए हैं
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