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गुरुवार, 17 सितंबर 2015

सागर निजामी

अंगड़ाई भी वो लेने न पाए उठाके हाथ
देखा जो मुझ को छोड़ दिए मुस्कुराके हाथ

बेसाख़्ता निगाहें जो आपस में मिल गईं
क्या मुँह पर उस ने रख लिए आँखें चुराके हाथ

ये भी नया सितम है हिना तो लगाएँ ग़ैर
और उस की दाद चाहें वो मुझ को दिखाके हाथ

बे-इख़्तियार होके जो मैं पाओं पर गिरा
ठोड़ी के नीचे उस ने धरा मुस्कुराके हाथ

क़ासिद तिरे बयाँ से दिल ऐसा ठहर गया
गोया किसी ने रख दिया सीने पे आके हाथ

ऐ दिल, कुछ और बात की रग़बत न दे मुझे
सुननी पड़ेंगी सैंकड़ों उस के लगाके हाथ

वो कुछ किसी का कहके सताना सदा मुझे
वो खींच लेना परदे से अपना दिखाके हाथ

देखा जो कुछ रुका मुझे तो किस तपाक से
गर्दन में मेरी डाल दिए आप आके हाथ

कूचे से तेरे उठें तो फिर जाएँ हम कहाँ
बैठे हैं याँ तो दोनों जहाँ से उठाके हाथ

पहचाना फिर तो क्या ही नदामत हुई उन्हें
पंडित समझके मुझ को और अपना दिखाके हाथ

देना वो उस का साग़र-ए-मै याद है निज़ाम
मुँह फेरकर उधर को इधर को बढ़ाके हाथ .
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