Click Here!

शुक्रवार, 25 सितंबर 2015

फैज अहमद फैज

आए कुछ अब्र कुछ शराब आए
उस के बाद आए जो अजाब आए

बाम-ए-मीना से महताब उतरे
दस्त-ए-साकी में आफताब आए

हर रग-ए-खून में फिर चरागां हो
सामने फिर वो बे-नकाब आए

उम्र के हर वर्क पे दिल की नज़र
तेरी मेहर-ओ-वफा के बाब आए

कर रहा था ग़म-ए-जहाँ का हिसाब
आज तुम याद बे-हिसाब आए

न गई तेरे ग़म की सरदारी
दिल में यूँ रोज इन्कलाब आए

जल उठे बज़्म-ए-ग़ैर के दर-ओ-बाम
जब भी हम ख़ानुमाँ-ख़राब आए

इस तरह अपनी ख़ामुशी गूँजी
गोया हर सम्त से जवाब आए

फ़ैज़ थी राह सर-ब-सर मंज़िल
हम जहाँ पहुँचे कामयाब आए.
Categories: ,