आए कुछ अब्र कुछ शराब आए
उस के बाद आए जो अजाब आए
बाम-ए-मीना से महताब उतरे
दस्त-ए-साकी में आफताब आए
हर रग-ए-खून में फिर चरागां हो
सामने फिर वो बे-नकाब आए
उम्र के हर वर्क पे दिल की नज़र
तेरी मेहर-ओ-वफा के बाब आए
कर रहा था ग़म-ए-जहाँ का हिसाब
आज तुम याद बे-हिसाब आए
न गई तेरे ग़म की सरदारी
दिल में यूँ रोज इन्कलाब आए
जल उठे बज़्म-ए-ग़ैर के दर-ओ-बाम
जब भी हम ख़ानुमाँ-ख़राब आए
इस तरह अपनी ख़ामुशी गूँजी
गोया हर सम्त से जवाब आए
फ़ैज़ थी राह सर-ब-सर मंज़िल
हम जहाँ पहुँचे कामयाब आए.
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ख़ुदा महफूज़ रखें आपको तीनों बलाओं से, वकीलों से, हक़ीमों से, हसीनों की निगाहों से। -अकबर इलाहाबादी
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फैज अहमद फैज
आए कुछ अब्र कुछ शराब आए
उस के बाद आए जो अजाब आए
बाम-ए-मीना से महताब उतरे
दस्त-ए-साकी में आफताब आए
हर रग-ए-खून में फिर चरागां हो
सामने फिर वो बे-नकाब आए
उम्र के हर वर्क पे दिल की नज़र
तेरी मेहर-ओ-वफा के बाब आए
कर रहा था ग़म-ए-जहाँ का हिसाब
आज तुम याद बे-हिसाब आए
न गई तेरे ग़म की सरदारी
दिल में यूँ रोज इन्कलाब आए
जल उठे बज़्म-ए-ग़ैर के दर-ओ-बाम
जब भी हम ख़ानुमाँ-ख़राब आए
इस तरह अपनी ख़ामुशी गूँजी
गोया हर सम्त से जवाब आए
फ़ैज़ थी राह सर-ब-सर मंज़िल
हम जहाँ पहुँचे कामयाब आए.
उस के बाद आए जो अजाब आए
बाम-ए-मीना से महताब उतरे
दस्त-ए-साकी में आफताब आए
हर रग-ए-खून में फिर चरागां हो
सामने फिर वो बे-नकाब आए
उम्र के हर वर्क पे दिल की नज़र
तेरी मेहर-ओ-वफा के बाब आए
कर रहा था ग़म-ए-जहाँ का हिसाब
आज तुम याद बे-हिसाब आए
न गई तेरे ग़म की सरदारी
दिल में यूँ रोज इन्कलाब आए
जल उठे बज़्म-ए-ग़ैर के दर-ओ-बाम
जब भी हम ख़ानुमाँ-ख़राब आए
इस तरह अपनी ख़ामुशी गूँजी
गोया हर सम्त से जवाब आए
फ़ैज़ थी राह सर-ब-सर मंज़िल
हम जहाँ पहुँचे कामयाब आए.
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